कहाँ जाकर थमेगा ये मानसिक पतन

 आजकल जिस तरह के हालात हैं उससे तो ये लगता है कि मानव के पतन की पराकाष्ठा हो गई है । न तो बच्चियाँ सुरक्षित हैं ओर न ही महिलाएं ! बढते अपराध ये बताने के लिए काफी हैं कि हम पतन के उस दौर में आ गए हैं जहां पशु और मानव में कोई अंतर नहीं रह गया है । मासूम बच्चों के साथ होने वाले अपराध इस बात की ओर इशारा करते हैं कि हमारा सामाजिक ताना बाना पूरी तरह छिन्न भिन्न हो गया है । मासुमों के साथ बढती हरकतों का परिणाम ये है कि समाज में चारो तरफ भय का वातावरण तैयार हो गया है । ये वातावरण समाज के लिए बेहद घातक है । हमारे देश में प्रेम भाईचारा आज भी है परंतु जिस तरह की स्थितिअब युवा वर्ग महसूस कर रहा है वह बेहद चिन्ता जनक है । देश भर में किशोरियों के साथ युवतियों के साथ होने वाले यौन शोषण की घटनाओं प्र लगाम कैसे लगे इसकी चिन्ता अब हुक्म्र रानों को करनी होगी । तभी जाकर इस तरह की घटनाओं को रोकने में मदद मिल सकती है । प्रारम्भ से ही शिक्षा के साथ ही नैतिक शिक्षा की भी जरुरत आ पडी है । स्कूल की किताबों से कचरा विषयों को निकालकर उसमें ऐसे विषय लाने होंगे जिसका आम जीवन में मह्त्व हो । अभी तो हम जिस तरह की शिक्षा दे रहे हँ वह अब कारगर नहीं रही । प्रत्येक विषय में ये देखना जरुरी है कि सामाजिक मूल्यों की स्थापना के लिए क्या जरुरी है वह विषय पाठ्यक्रम में शामिल हो ताकि बाल्यकाल से ही सही और गलत की समझ विकसित हो जाए । पारिवारिक ताना बाना व आत्मीयता की आत्मसात करने की आवश्यकता है ।