कहाँ जाकर थमेगा ये मानसिक पतन
आजकल जिस तरह के हालात हैं उससे तो ये लगता है कि मानव के पतन की पराकाष्ठा हो गई है । न तो बच्चियाँ सुरक्षित हैं ओर न ही महिलाएं ! बढते अपराध ये बताने के लिए काफी हैं कि हम पतन के उस दौर में आ गए हैं जहां पशु और मानव में कोई अंतर नहीं रह गया है । मासूम बच्चों के साथ होने वाले अपराध इस बात की ओर इशार…